लक्षण :- जहवाँ वर्ण्य अवर्ण्य कई के एके धर्म देखाला।
अथवा क्रिया एक हो तहवाँ तुल्ययोगिता कहाला॥
चौपई :- कई क्रिया के एके धर्म। जहाँ बतावे गुण या कर्म॥
तुल्ययोगिता उहाँ कहात। जेकर चारि भेद दरसात॥
उदाहरण :- माघ महीना मे एको दिन यदि पाला परि जाला।
तब रहर मटर आ लौकी तीनूँ पाला से जरि जाला॥
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त्वरित गति का धर्म के हे सर्व तूँ अवतार बाड़ऽ।
विषधर महेश्वर और उनके हार आ सिंगार बाड़ऽ।
तूँ कुंडली हरि और चक्री गरुड़ पर असवार बाड़ऽ।
पूत पवनाशन तपस्वी जगत के आधार बाड़ऽ।
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जवना माटी से बुद्ध आ ईसा रचइले ओ माटी में से कुछ उबरि गइल।
ओहि उबरल माटी से गान्धी रचइले तब से ऊ माटी सँपरि गइल॥
दोहा :- इम्तिहान पुस्तक सहित सजी सम्हारत कार।
निम्नलिखित उपकरण सब अब हो गइल बेकार॥
अभिभावक आ पुलिस जन घातक छुरा कटार।
चिट के लिखवैया तथा चिट पहुँचावन हार।
लीडर लरिका पढ़तुआ तिसरे दस्यु समाज।
प्रजातंत्र में तीनिये करें निकण्टक राज॥
पहलवान या तारिका आ पुवरा के आगि।
तीनूँ के चकमक चमक जात जल्दिये भागि॥
छात्र नकल रोके बदे चलल कई अभियान।
लौकल छुट्टा नकल में पर सब के कल्यान॥
कवित्त :- किराया से बचे बचे के बैठें दाढ़ी बढ़ा गाड़ी में
चन्दन आ झोंटा से शोभित निज माथ ले।
रेल कर्मचारी आ कुर्सीधारी नेता लोग
चलें सरकारी एक पास सदा साथ ले।
केहु माँगे भीखि केहु चन्दा चिहूटत चल
कौनों धर्म काज आ गोशाला के लाथ ले।
छात्र लोग चलें सदा बस में आ रेल में भी
गोल बान्हि आपन आ पुस्तक कुछ हाथ ले॥
सवैया :-
ओह वस्तु के नित्य अभाव बढ़े जेतना भर कोटा में राखल जात बा।
अवरी सब बस्तु के भाव बढ़े छुटहा जे बजार में रोज बिकात बा।
बड़का खेतहा के लगान बढ़े बढ़े जोस जियादे त लासि लदात बा।
सरकारी विभाग बढ़े जनता के अभाग बढ़े बढ़े देश कहात बा॥
इसकूल से भागल जे कहियो कबें पार न लागतल बाटे पढ़ाई।
अथवा अपना जिनगी भर जे कइले बा लफँगन के अगुवाई।
अथवा जेकरा डर लाज नबा जग जाहिर जे के हवे बेहयाई।
मन्त्रि मण्डल में खपि जाई इहो सब देश के जल्दिए भागि बनाई॥
प्रथम तुल्ययोगिता
लक्षण :- कई कथ्य के एक धर्म जब एके बेर कहाला।
पहिला भेद तुल्ययोगिता के तब मानल जाला॥
चौपाई :- कई कथ्य के गुण या कर्म। या उनके साधारण धर्म॥
एक बार एक साथ कहाय। तुल्ययोगिता तहाँ सुहाय॥
वीर :- एके क्रिया कई कर्ता का साथे आवे बारम्बार।
तुल्ययोगिता पहिली ऊहो मानत भूषण सुकवि उदार॥
एके बार क्रिया राखे के नियम इहाँ बा ना रहि जात।
पृष्ठ एकानबेवाँ पर भूषण ग्रन्थावलि में पद्य देखात॥
उदाहरण (दोहा) :-
व्याह समर्थक ज्योतिषी औ नाटक के पात्र।
नकल बिना निष्क्रिय बनें न्यायालय आ छात्र॥
इन्द्रधनुष कपटी हितू और पुलीस सुजान।
तीनूँ दर्शन देत जब खतम होत तूफान॥
बेश्या बाछा बर बधू आ नाता सढुवान।
पहलवान कुछ दिन चमकि जल्दी परत पुरान॥
बर बाछा का सीर पर लोर्हा जब चलि जात।
खूँटा पर चुपचाप तब बान्हल जीयत खात॥
लीडर लोफर छात्र आ नौकर दस्यु समाज।
भोगत ईहे पाँच बा प्रजातंत्र में राज॥
थौसल पशु पण्डित प्रवर तजत न स्वयं स्थान।
माघ मेघ में दुहुन का जीवन के अवसान॥
विप्र धेनु सुर संत तब पावत सुख सम्मान।
जब अधर्म टारे बदे प्रगट होत भगवान॥
नेता या विद्यार्थी अति मनबढू देखात।
करत अराजकता सृजन ई दूनूँ दिन रात॥
जिमिदारी उठत धोती पगरी के चलन।
ना जाने कि का भइल , सेर , पसेरी और मन॥
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चौपई :- होमोपैथ दवाई में। आ भूत का ओझाई में॥
कमजोर ग्रह का पुजाई में। हमार विश्वास कम रहेला॥
होमोपैथ का गोली में। धूर्त का बोली में॥
ससुरार का ठिठोली में। कुछ मिठास जरूर रहेला॥
नेता छात्र और मजदूर। आजादी का मद में चूर॥
राजा जमींदार बड़ जाति। पिंजड़ा में काटत दिन-रात॥
सकल उड़ाका दल के त्रास। एस.डी.एम. के जाँच प्रयास॥
और शस्त्र पुलिस के फोर्स अभिभावक के तगड़ा सोर्स॥
चिट लेखक पहुँचावन हार। छूरा छूरी और कटार॥
ई सब अब हो गइल बेकार। जब आपन शिक्षा सरकार॥
छात्रन के बा आज्ञा देत। उत्तर लिखो किताब समेत॥
आवत पर्व चुनाव महान। विविध दान के जहाँ विधान॥
नोट कोट आ कम्बल दान। साइकिल सहित महा कल्यान॥
रोला :- जातिपाँति के भेद लाज भय आ अनुशासन।
राजचिन्ह सब छत्र मुकुट कलँगी सिंहासन॥
भेंट सलामी नजर जाति के पदवी सारी।
राउत गुप्ता सिंह राय मल मियां तिवारी॥
छप्पय :-
चरन सिंह के चार्ज देह के सब पटवारी।
निज प्रतिनिधि रखि चाय शेष सब खातिरदारी॥
बड़ मनई के रोब दाब आ उनके गारी।
साक्षरता के कमी प्लेग हैजा बीमारी॥
सवैया :-
मन रंजन अंजन आ अमृतांजन अंजन के जे प्रकार हवे।
मधु अंजन केवल वारिज के अरु नेत्र सुधा सुखसार हवे।
बरिया झख ह्वेल का तेल के और भिटामिन 'ए' के अहार हवे।
चशमा अति पावरदार हवे सुरमा दिन में दुइ बार हवे॥
इसकूल बढ़े बढ़े टीचर जेकर लापरवाही बढ़े न कहात बा।
बढ़े छात्र के कोर्स किताब किताब के दाम बढ़े कि अकास छुवात बा।
अनुशासन हीन के चाव बढ़े बढ़े छात्र जमाव त लोग डेरात बा।
बिचारक लोग के चिन्ता बढ़े कवने तरे शिक्षा बढ़े न बुझात बा॥
दुरभाव बढे आ तनाव बढ़े नित देश के ईहे सुभाव लखात बा।
अलगाव पै पाव बढ़े आ कुमन्त्र प्रभाव बढ़े जब बुद्धि नशात बा।
भगवान तथा गुरू संख्या बढ़े गरिमा गुरू के बढ़े शिक्षा दियात बा।
अभाव बढ़े सदा कोटा का बस्तु के भाव बढ़े जो विमुक्त बिकात बा॥
उल्लाला :-
नेत्र स्नान त्रिकाल जे सारंगधर पुस्तक कहत।
रोग मोतियाबिन्द का आगे सब निष्फल रहत॥
दूसरी तुल्ययोगिता
लक्षण (दोहा) :-
धर्म कई उपमान के एके जहाँ देखात।
तुल्ययोगिता दूसरी उहवाँ मानल जात॥
उदाहरण (सार) :-
जे मकई के ताजा सतुवा चीनी मिलवल फाँकी।
ऊ रसगुल्ला आ बरफी का ओर कबे ना झाँकी॥
जे बाँसी आ पिपरा मेला जा के कबे नहाइ।
ऊ काग कुकुर आ सूवर के तन पा कर के हरषाई॥
लीची दाख बदाम छुहारा सेब आम का आगे।
केरा कटहर किसमिस अमरूद सब फल फीका लागे॥
दोहा :- नीम अफीम चिरायता आ हुरहुर के पात।
ओकरा लगी न तीत जे सहि जी खल के बात॥
मोहर सिंह मलखान के का केहु सुनी बखान।
एक बार भी जे सुनी फुलन के गुणगान॥
मानत फूलन के निरखि चारू चिरई हार।
खंजन शुक पिक हंस सब आपन गर्व बिसार॥
कुण्डलिया :-
बढ़त जात इसकूल बढ़त संख्या छात्रनं के।
पाठ्य पुस्तकों बढ़त बढ़त कीमत भी उनके॥
वेतन बढ़ते जात हवे दिन दिन गुरुजन के।
युनियन बढ़ते जात बढ़त ताकत युनियन के॥
अनुशासन के हीनता दिन दिन बा बढ़ते रहत।
का भविष्य बाटे लिखल बुधजन के चिन्ता बढ़त॥
सवैया :-
उपटे केहु सोखा कहीं त उहाँ जनता जुटि जात अनेक हजार बा।
एक सन्तति माँगे बदे लगे मेला जहाँ पर बूढ़न शाह मजार बा।
साक्षर लोग के भीड़ लगे नोकरी बदे होत जो साक्षात्कार बा।
परीक्षण केन्द्र के भीड़ बढ़े सब गंगा का सामने अस्सी के धार बा॥
मनरंजन अंजन आ अमृतांजन अंजन के जे प्रकार हवे।
मधु अंजन केवल वारिज के अरु नेत्र सुधा सुख सार हवे।
बरिया झख ह्वेल का तेल के और भिटामिन ए के अहार हवे।
सुरमा दिन में दुइ बार तथा चसमा अति पावरदार हवे॥
तीसरी तुल्ययोगिता
लक्षण (हरिगीतिका) :-
उत्कृण गुण का कई बस्तुन का सँगे उपमेय आवे।
तीसरी तुल्ययोगिता तब सुकवि सब उहवाँ बतावे॥
या
बहुतन के गुण एक संग जहाँ कथन हो जात।
तुल्ययोगिता तीसरी ऊहे मानल जात॥
उदाहरण (सार) :-
दृष्ट देवता सूर्य एक तीनि लोक दीआ।
महारथी अति तेज पुंज सब जग उतपादक बीआ॥
कम्युनिष्ट शोषण कर्ता आ जगत घड़ी अति भारी।
मित्र सदाचारी सहस्र भुज तम रिपु कल्मष हारी॥
छन्द :- जे माटी से महावीर जिन बुद्धदेव आ ईसा बनले।
ऊहे माटी फेरू दुबारा ब्रह्मा जी कुछ खनि के सनले।
ओ माटी से मालवीय आ गान्धी बिनुवा तीनि रचइले।
तब से ब्रह्मा जी ऊ माटी खने फेरुकबे ना गइले॥
सवैया :-
कबे वृन्दा सती रहली जेकरा बल जीतें जलन्धर युद्ध में बाजी।
वीर वधू भइला गुने तारा मदोदरि के कबे कीर्ति विराजी।
युग द्वापर पाइ के द्रोपदी कुन्ती आ अम्बा के कीर्ति रही छिति छाजी।
कलि के बखरा भले सोचि बिचारि के फूलन के रचले बरम्हा जी॥
सदा कान्ह पै बाँया विराजत आ कबे दाहिन कान्ह पै वास हवे।
सदा दान का नाम पै आनहू के धन प्राप्त करे बदे पास हवे।
बड़की जतिया के कहावे बदे उपवीत एगो चपरास हवे।
किरिया यदि बिप्र का खाये के होत दियावत ई विश्वास हवे॥
चौपइया :-
नारायण शैय्या निपुण डसैया हे हरि अति हत्यार तुँही।
अपने तूँ विषधर तेपर विषधर शंकर के सिंगार तुँही।
चक्री कुण्डलिहा ब्रकी चलिहा धरती के आधार तुँही।
पवनाशन योगी द्विरसन भोगी शेषनाग अवतार तुँही॥
चौपई :- एक जने पटिदार हमार। जे अनेक गुण के भण्डार॥
कवि वकील आ वैद्य किसान। लिपिक हस्त रेखा विद्वान॥
नव रस का कविता के खान। ज्योतिष में विशेष गतिमान॥
मिमिक मैन प्रतिभा अवतार। घर के एक मात्र मलिकार॥
धर्मनिष्ठ आ दुनियादा। विनयशील सौजन्य अगार॥
आठ मजूर बरोबर कार। लेत खेत में स्वयं सम्हार॥
दोहा :- रामायण हमरा बदे स्वर्ग निसेनी कोष।
मनरंजन मंत्रीगुरू निर्णायक गुण दोष॥
चौथी तुल्ययोगिता
लक्षण (छंद) :-
अनुकूल तथा प्रतिकूल दशा आशत्रु मित्र का साथ जहाँ।
होत सरिस व्यवहारत चौथी तुल्ययोगिता होति तहाँ॥
उदाहरण (दोहा) :-
राजमुकुट या आगि में सोना एक समान।
राखत आपन रंग बा रहत सदा द्युतिमान॥
जे सुख फूलन का मिले बन में रहि स्वच्छन्द।
मिलत उहे सुख आज भी जब कि जेल में बन्द॥
केहु पूजत बा और केहु खात मारि के जान।
देति दुओ के दूध गौ जानति एक समान॥
सुख में गान्धी जी करें नित्य राम ध्वनि गान।
गोली खा 'हे राम' कहि तेजले आपन प्रान॥
सार :- रावन वन में सीता जी के छल से जाइ चोरौले।
गिद्ध राम खातिर रावन से लडि़ के प्रान गँवौले॥
लेकिन राम दुओ प्राणी के अपना धाम पठौले।
शत्रु मित्र में भावभेद के ना तनिको अपनौले॥
केहु गन्दगिये धरे नित्य केहु फूले नित्य चढ़ावे।
दूनूँ का ऊपर धरती माता के भाव देखावे॥
पालन पोसन करे दुओ के माथे राखि खेलावे।
मुवआ पर लोग फेंकि दे तब कोरा में राखि सुतावे॥
* * * *
लूगा से तनि तोपल ढाकल दुइ ढेकुल खंभ देखाला।
बरहा बाँस रहे ना ओमें ना धरती में गाड़ल जाला।
पहँसुल का दुइ गोड़ा पर ऊ दूनूँ खम्भा अड़ल रहेला।
सीपी बटन पाँच के पाती आगे जेहि में जड़ल रहेला।
अचर हवे ना सचर हवे ऊ चाहे त ऊ दौरि सकेला।
दूनूँ में ऐसन संगत बा चले न एगो अलग अकेला।
पारा पारी भाँजा माफिक दूनूँ आगे मुँहे बढ़ेला।
दूनूँ खम्भा पर अइसन का बाकस एगो देखि परेला।
जेमे कई मशीन निरन्तर बिनु चालक के काम करेला।
बाकस का दूनूँ कगरी दुइ मनियर साँप करें रखवारी।
दूनूँ साँप पाँच फन वाला , दूनूँ साँप पाँच मणिधारी।
बाकस का ऊपर पतराहे खूँटा एक बनावल बाटे।
जेपर भण्टा का खेते के हाँड़ी ले अउन्हावल बाटे।
ओही हँडि़या में सात छेद जे हाँड़ी के शोभा सरसावे।
तरह तरह के मल जवना से भीतर से बहि बहि के आवे।
ओह सातो में बड़का एगो दिन में प्राय: कमें चुपाला।
दुइगो छोटका कबे रात में बड़हन कुक्कुर अस गुरनाला।
ब्रह्मा जी के सबसे उत्तम रचना ईहे मानल जाला।
बड़ा भागि से सुर दुरलभ ई जगह जीवन का कबे भेटाला॥